आप भगवान को किस रूप में देखना चाहते हैं चुनाव आप पर निर्भर है ।
भगवान सर्वव्यापक और शाश्वत हैं। वे सबको मिल सकते हैं। आप जिस रूप में भगवान को पाना चाहते हैं उस रूप में आपको मिलते हैं। श्रीकृष्ण गीता में भी वचन देते हैं किः
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
'हे अर्जुन ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ।'(गीताः 4.11)
आप कुशलता से परिश्रम करते हैं, पुरुषार्थ करते हैं तो भगवान पदार्थों के रूप में मिलेंगे।
आलसी और प्रमादी रहते हैं तो भगवान रोग और तमोगुण के रूप में मिलेंगे।
दुराचारी रहते हैं तो भगवान नरक में मिलेंगे।
सदाचारी और संयमी रहते हैं तो भगवान स्वर्ग के रूप में मिलेंगे।
सूर्योदय के पहले स्नानदि से शुद्ध होकर प्रणव का जाप करते हैं तो भगवान आनन्द के रूप में मिलते हैं।
सूर्योदय के बाद भी सोते रहते हैं तो भगवान आलस्य के रूप में मिलेंगे।
भगवान की बनाई अनेक लीलाओं को, इष्टदेव को, आत्मवेत्ता सदगुरु को प्यार की निगाहों से देखते हैं, श्रद्धा-भाव से, अहोभाव से दिल को भरते हैं तो भगवान प्रेम के रूप में मिलेंगे।
वेदान्त का विचार करते हैं, आत्म-चिन्तन करते हैं तो भगवान तत्त्व के रूप में मिलेंगे।
घृणा और शिकायत के रूप में देखते हैं तो भगवान शत्रु के रूप में मिलेंगे।
धन्यवाद की दृष्टि रखते हैं तो भगवान मित्र के रूप में मिलते है।
अपने चित्त में सन्देह है, फरियाद है, चोर डाकू के विचार हैं तो भगवान उसी रूप में मिलते हैं।
अपनी दृष्टि में सर्व ब्रह्म की भावना है, सर्वत्र ब्रह्म ही ब्रह्म दृष्टि आता है तो दूसरों की नजरों में जो क्रूर हैं, हत्यारे हैं, डाकू हैं, वे तुम्हारे लिए क्रूर हत्यारे नहीं रहेंगे।
आप निर्णय करो कि भगवान को किस रूप में देखना चाहते हैं। जब सब भगवान हैं, सर्वत्र भगवान हैं तो आपको जो मिलेगा वह भगवान ही है। समग्र रूप उसी के हैं। यह स्वीकार कर लो तो सब रूपों में भगवान मिल जायेंगे। आनन्द ही आनन्द चाहो, प्रेम ही प्रेम चाहो तो भगवान उसी रूप में मिलेंगे।