Aatmagunjan (Urdu)
Aatmagunjan (Hindi)
" आत्मगुंजन " राग-द्वेष, स्वार्थ, भेदबुद्धि, अहंकार आदि इस प्रकार के अन्य जिन-जिन कारणों से मनुष्य बंधन में पड़कर चौरासी के चक्कर में भटकता है उनसे बचकर कैसे मुक्तात्मा हो सकता है, उन सभी बातों व गीता, भागवत, पुराण, उपनिषदों का सार काव्यशैली में ‘आत्मगुंजन’ पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया गया है । जैसे -
छोटे बड़े निर्धन धनी, कर प्यार सबको एक सम ।
बट्टे सभी शिल एक के, कोई नहीं है वेश कम ।।
मत तू किसीसे कर घृणा, सबकी भलाई चाह रे ।
जो मार्ग में काँटे धरे, बो फूल उसकी राह रे ।।...
इस पुस्तक के बार-बार पठन व चिंतन से जीवन के गूढ़ रहस्यों की परतें खुलने लगती हैं । अध्यात्म के पथिकों के लिए यह अद्भुत है । इसका लाभ लेनेवाले ‘मैं-मेरे... तू-तेरे...’ की तुच्छ मान्यताओं से ऊपर उठकर उन्नत जीवन की ओर अग्रसर होने लगते हैं । हृदय के बिखरे तारों को झंकृत कर जीवत्व से शिवत्व की ओर चलने की प्रेरणा देनेवाली अनुभव-वाणी से युक्त इस आत्मगुंजन सत्साहित्य में है :
* क्या है मनुष्य का सच्चा कुल, गोत्र ?
* दुःख, शोक एवं खिन्नता मिटानेवाली चिंतन-कणिकाएँ
* साधना-पथ में आनेवाले विघ्न कौन–कौन से हैं ?
* मन के दोष एवं उन्हें दूर करने के उपाय
* दैवीय गुणों का वर्णन व उन्हें हृदयस्थ करने की युक्ति
* मानव का मुख्य कार्य क्या है ?
* तो स्वर्ग द्वार सच में तेरे लिए खुल जाय
* कौन-से मनुष्य सुखी हैं ?
* कौन-से नर सिद्धि को नहीं पा सकते ?
* शास्त्र, गुरु, भगवान में श्रद्धा करने से होता कल्याण
* संकीर्ण ‘मैं-मेरे...’ से बुद्धि हटाकर उसे अपने वास्तिवक ‘मैं’ में लगायें
* सभी दुःखों का नाश करनेवाली परमात्म भावना का विकास कैसे करें ?
* जन्म-मरणरूपी महादुःख का नाश कैसे हो ?
और भी बहुत कुछ... वह भी रोचक काव्यशैली में !