Prabhu ! ParamPrakash (Punjabi)
प्रभु ! परम प्रकाश की ओर ले चल... :- संसार का अज्ञान-अंधकार मिटाने के लिए जो अपने-आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं । उसके बावजूद भी जैसे सूर्य अपना प्रकाश देने का स्वभाव नहीं छोड़ता वैसे ही संत भी करुणा और परहितपरायणता का स्वभाव नहीं छोड़ते हैं । दुष्ट लोगों द्वारा की जानेवाली टीका-टिप्पणियाँ, निंदा, कुप्रचार और अन्यायी व्यवहार की आँधियों को सहते हुए भी सतंजन किस प्रकार समाज के कल्याण में रत रहते हैं यह ‘प्रभु ! परम प्रकाश की ओर ले चल...’ नामक इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है ।
इसमें वर्णित है :
* गहन अंधकार से प्रभु परम प्रकाश की ओर ले चल... (महात्मा बुद्ध की सीख)
* कैसी है दुष्टता की दुनिया ? (मार्टिन लूथर एवं एक शिष्य का संवाद)
* क्या है समझदारी की पगडंडी ?
* संत ऐसे दुष्टजनों को क्यों नहीं बदलते ?
* सत्यानाश कर डालने के बाद पश्चात्ताप से क्या लाभ !
* अपनी पीढ़ियों को नरकगामी बनानेवाले लोग
* श्री रामकृष्ण परमहंस, शिर्डीवाले साँईंबाबा, संत एकनाथजी, स्वामी विवेकानंदजी, दार्शनिक सुकरात, संत तुकारामजी, ऋषि दयानंदजी आदि संतों पर दुष्टों व निंदकों ने कितना जुल्म किया !
* मूर्खता कर हम अपने जीवन का ह्रास क्यों करें ?
* ...ऐसे लोग अमृत को भी विष बनाकर ही पेश करते हैं
* हजरत मुहम्मद ने दी बेवफा शिष्य को प्रयोगात्मक सीख
* यह बात सत्य है
* असत्य इतनी जल्दी क्यों फैल जाता है ?
* बलिदान का बल
* अचलता का आनंद
* ये हैं विकास के वैरी
* उन्हें कुएँ में कूदना ही है तो कैसे रोका जाय !
* पामरजनों की यह कैसी विचित्र रीति है ?
* सिंधी जगत के महान संत श्री टेऊँरामजी, संत कँवररामजी को निंदकों ने कितना सताया !
* विकास के वैरियों से सावधान
* दिव्य दृष्टि
* जीवन की सार्थकता
* ओ चंद रुपयों के पीछे अपनी जिंदगी बेचनेवालो ! सनातन संस्कृति पर प्रहार करनेवाले गद्दारो ! ओ संतों के निंदको ! ओ भारतमाता के हत्यारो ! इतिहास उठाकर देखो तुम्हारे जैसे नराधमों की क्या दुर्दशा हुई है, विचार करो और सावधान हो जाओ !