मातृ-पितृ पूजन दिवस 2020 (उड़िया)
ୟୌଵନ ସୁରକ୍ଷା
योगी हो या भोगी, सबको संयम की आवश्यकता होगी।
विभिन्न सामवियकों और समाचार पत्रों में तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और 'सेक्सेलोजिस्ट' युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र-संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हैं।
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ତୁ ଗୋଲାପ ହୋଇ ମହକ
जैसे भवन का स्थायित्व एवं सुदृढ़ता नींव पर निर्भर है वैसे ही देश का भविष्य विद्यार्थियों पर निर्भर है । विद्यार्थी एक नन्हे-से कोमल पौधे की तरह होता है । यदि उसे उत्तम शिक्षा-दीक्षा मिले तो वही नन्हा-सा कोमल पौधा भविष्य में विशाल वृक्ष बनकर पल्लवित और पुष्पित होता हुआ समाजरूपी चमन को महका सकता है ।
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ଶ୍ରୀମଦ ଭଗବଦଗୀତା
माहात्म्य - श्लोक - अनुवाद
गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है।
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ଶ୍ରୀ ଆଶାରାମୟଣ
श्री आशारामायण के पाठ से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, मनन एवं चिंतन करने से जीवन उन्नत एवं प्रभुप्रेम से, ज्ञान से सम्पन्न होता है ।
* मनोकामना-प्रदायक एवं पठनीय, चिंतनीय श्री आशारामायण
* श्रीगुरु-महिमा
* प्रार्थना
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ଶ୍ରାଦ୍ଧ ମହିମା
भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि यह जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने की उपाय बताती ही है लेकिन मरने के बाद भी, अंत्योष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सद्गति के लिए किये जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है ।
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ସଂସ୍କାର ସରିତା
जीवन में संस्कार से बढ़कर कोई धन नहीं है । धर्म व सत्संस्कारों से ही मानव ‘मानव’ बनता है । बालक तो गीली मिट्टी जैसे होते हैं, उन्हें जैसा बनाना चाहें बना सकते हैं ।
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ସଂସ୍କାର ଦର୍ଶନ
किसी भी घर, समाज अथवा देश की शान बुलंद करनी हो तो उसके बच्चों एवं विद्यार्थियों को स्वस्थ, सुयोग्य, संस्कारी एवं बुलंद बनाना चाहिए । इसी सूत्र को लक्षित कर संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा संचालित ‘बाल संस्कार केन्द्रों’ में बच्चों एवं विद्यार्थियों में किये जा रहे सुसंस्कार-सिंचन का दर्शन करानेवाली यह पुस्तक ‘संस्कार दर्शन’ विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों एवं बाल संस्कार केन्द्र के संचालकों - सभीके लिए ज्ञान का एक उत्तम खजाना है ।
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