Shri Narayan Stuti (Kannad)
ಶ್ರೀ ನಾರಾಯಣ್ ಸ್ತುತಿ
श्रीनारायणस्तुति
'श्रीमद्भागवत' केनवमस्कन्धमेंभगवानस्वयंकहतेहैं-
साध्वोहृदयंमह्यंसाधूनांहृदयंत्वहम्।
मदन्यत्तेनजानन्तिनाहंतेभ्योमनागपि।।
अर्थात्मेरेप्रेमीभक्ततोमेराहृदयहैंऔरउनप्रेमीभक्तोंकाहृदयस्वयंमैंहूँ।वेमेरेअतिरिक्तऔरकुछनहींजानतेतथामैंउनकेअतिरिक्तऔरकुछभीनहींजानता।
पुराणशिरोमणि 'श्रीमद्भागवत' ब्रह्माजी, देवताओं, शुकदेवजी, शिवजी, सनकादिमुनियों, देवर्षिनारद, वृत्रासुर, दैत्यराजबलि, भीष्मपितामह, माताकुन्ती, भक्तप्रह्लाद, ध्रुव, अक्रूरआदिकईप्रभुप्रेमीभक्तोंद्वाराश्रीनारायणभगवानकीकीगयीस्तुतियोंकामहानभण्डारहै।प्रस्तुतपुस्तकध्रुव, प्रह्लाद, अक्रूरआदिकुछउत्तमपरमभागवतोंकीस्तुतियोंकासंकलनहै, जिसकेश्रवण, पठनएवंमननसेआप-हमहमाराहृदयपावनकरें, विषयरसकानहींअपितुभगवदरसकाआस्वादनकरे, भगवानकेदिव्यगुणोंकोअपनेजीवनमेंउतारकरअपनाजीवनउन्नतबनायें।भगवानकीअनुपममहिमाऔरपरमअनुग्रहकाध्यानकरकेइनभक्तोंकोजोआश्वासनमिलाहै, सच्चामाधुर्यएवंसच्चीशांतिमिलीहै, जीवनकासच्चामार्गमिलाहै, वहआपकोभीमिलेइसीसत्प्रार्थनाकेसाथइसपुस्तककोकरकमलोंमेंप्रदानकरतेहुएसमितिआनंदकाअनुभवकरतीहै।
हेसाधकबंधुओ ! इसप्रकाशनकेविषयमेंआपसेप्रतिक्रियाएँस्वीकार्यहैं।