Tu Gulab Hokar Mahak (Bangla)
तू गुलाब होकर महक (बांगला)
जैसे भवन का स्थायित्व एवं सुदृढ़ता नींव पर निर्भर है वैसे ही देश का भविष्य विद्यार्थियों पर निर्भर है । विद्यार्थी एक नन्हे-से कोमल पौधे की तरह होता है । यदि उसे उत्तम शिक्षा-दीक्षा मिले तो वही नन्हा-सा कोमल पौधा भविष्य में विशाल वृक्ष बनकर पल्लवित और पुष्पित होता हुआ समाजरूपी चमन को महका सकता है । लेकिन यह तभी सम्भव है जब उसे कोई योग्य मार्गदर्शक मिल जाय, कोई समर्थ गुरु मिल जायें और वह दृढ़ता तथा तत्परता से उनके उपदिष्ट मार्ग का अनुसरण कर ले ।
इस पुस्तक में पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा वर्णित उन्नतिकारक युक्तियों एवं संतों तथा गुरुभक्तों के चरित्रों का संकलन किया गया है, जिनके पठन, मनन एवं चिंतन से मनुष्य काँटों के बीच रहकर भी गुलाब की तरह जीवन को महका सकता है । प्रस्तुत सत्साहित्य में है :
* संत श्री आशारामजी बापू का प्रेरणादायी उद्बोधन
* सफलता की दिशा में आगे बढ़ने हेतु उत्साहवर्धन करनेवाली कविता – ‘कदम अपना आगे बढ़ाता चला जा...’
* तू गुलाब होकर महक... तुझे जमाना जाने
* अपना जीवन गुलाब की नाईं महकनेवाला कैसे बनायें ?
* जीवन की नींव क्या है ?
* जीवन को यदि तेजस्वी, सफल और उन्नत बनाना हो तो क्या करना चाहिए ? * शरीर और मन को मजबूत बनाने के लिए क्या करें ?
* जैसा खाओ अन्न वैसा होता मन
* ऐसी है भारतीय संस्कृति की क्षमता !
* गुरु तेगबहादुरजी के लाड़लों का कैसा महकता जीवन !
* भारतीय संस्कृति की महानता के बारे में पाश्चात्य चिंतकों के कुछ उद्गार
* हरिदास की हरिभक्ति
* बनावटी श्रृंगार से क्यों बचें ?
* इत्र से नहीं, संस्कृति के संस्कारों एवं सद्गुरु के ज्ञान से जीवन महकता है
* साहसी बालक बना प्रधानमंत्री
* गुरु-आज्ञापालन का चमत्कार
* अनोखी गुरुदक्षिणा
* एक कीड़ा बना महान ऋषि !
* 'पीड़ पराई जाणे रे....'
* विकास के वैरियों से सावधान !
* कुछ जानने योग्य बातें
* शयन की रीत
* स्नान का सही तरीका
* स्वच्छता का ध्यान रखें
* स्मरणशक्ति के विकास के लिए
* व्यक्तित्व और व्यवहार